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हमें चुनाव प्रक्रिया में आस्था और विश्वास बनाएं रखना होगा। सुप्रीम कोर्ट।

सुप्रीम कोर्ट में गैर सरकारी संगठन ' एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ' की ओर से दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने टिप्पणी की कि हमें चुनावी प्रक्रिया में आस्था और विश्वास बनाएं रखना होगा।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की ओर से दाखिल याचिका में ईवीएम में हेरफेर की आशंका जताते हुए वीवीपैट पर्चियों की 100 प्रतिशत मिलान की मांग की थी। याचिकाकर्ताओं नें जर्मन की भांति बैलट पेपर से चुनाव की भी मांग की थी। बैलट पेपर से चुनाव की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के वकील प्रशांत भूषण से कहा कि जब बैलट पेपर से चुनाव होता था, तब क्या होता था, आप भूल गए होंगे पर हमें याद है।
जब-जब चुनाव आते है तब-तब कुछ राजनीति दल, गैर सरकारी संगठन, और स्वयंभू तकनीकी विशेषज्ञ ईवीएम से चुनाव के खिलाफ मुहिम छेड़ कर समाज में चुनाव की सुचिता पर प्रश्नचिन्ह लगा कर अपनी नाकामी का ठीकरा ईवीएम पर फोड़ कर सत्ताधारी पार्टी को बदनाम करने का कार्य करते हैं। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी ईवीएम पर अंगुली उठाने वाले पर करारा प्रहार है।
भारत में जब से ईवीएम से चुनाव होने प्रारंभ हुए है तभी से ईवीएम पर सवाल उठाने वाले के सवालों के समाधान के लिए, समय-समय पर कईं कदम उठाएं गए हैं। जैसे मतदान के बाद 7 सेकेंड तक वीवीपैट दिखाई देना। वीवीपैट एक पर्ची होती है जिससे मतदाता को पता चलता है कि उसका वोट किस प्रत्याशी पर गया है। मतदान के बाद वीवीपैट स्वयं एक बाक्स में चली जाती है। चुनाव की की गिनती से पहले प्रत्येक विधानसभा के किन्हीं पांच मतदान केंद्रों की वीवीपैट का मिलान ईवीएम से किया जाता है, तब जाकर मतगणना होती है। अभीतक ईवीएम द्वारा सम्पन्न किसी भी चुनाव में कोई गड़बड़ी उजागर नहीं हुई है। सुप्रीम कोर्ट यह कहना बिलकुल उचित है कि चुनाव में जितना मानवीय दखल बढ़ेगा, गड़बड़ी की आशंका उतनी ही अधिक होगी। ईवीएम पर कोर्ट का क्या फैसला आएगा ? यह अभी भविष्य के गर्भ में है। लेकिन ईवीएम पर शक का कोई इलाज नहीं है।

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